Month: June 2018

उन दिनों कुछ रिश्ते ऐसे भी थे…

 

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बिना बात के हम मुस्कुराते भी थे,
और दर्द में गुनगुनाते भी थे,
अटपटे सपने देख दूसरों को जगाते भी थे,
और ज़ादा बक बक करने वाले को ज़बरदस्ती सुलाते भी थे,
उन दिनों कुछ रिश्ते ऐसे भी थे…

किसी को जीजा तो किसी को भाभी बना के चिढ़ाते भी थे,
हर गली हर नुक्कड़ पर जाम जमाते भी थे,
चार गाली सुनाके उन्हें गले लगते भी थे,
और बिना बात के रूठकर गाली खाते भी थे,
उन दिनों कुछ रिश्ते ऐसे भी थे…

पैसे न थे पर तौफे अनेक आते थे,
और एक दूसरे के दहेज़ में जाने के प्लान बनाते थे,
शेक चिल्ली बन एक दूसरे को आज़माते भी थे,
और चंद रुपैये में खुशियां उड़ाते भी थे,
उन दिनों कुछ रिश्ते ऐसे भी थे…

आज वो रिश्ते तूने नहीं,
आज वो साथ छूटे नहीं,
सीमाओं ने जकड तो लिया है,
पर जीने की आरज़ू अभी चुटी नहीं,
उन दिनों भी हम रोते तो थे,
पर उन दिनों रिश्ते होते तो थे…

ये बदलाव है क्यूंकि तब हम कमाते ना थे,
उलझनों में उलझने से घबराते ना थे,
वक़्त की पाबंदियां तो तब भी थी,
पर तब हम वक़्त से वक़्त चुराना जानते भी थे,
तब रिश्ते भी मासूम होते थे और उन्हें हम उलझाते न थे,
हाँ उन दिनों कुछ रिश्ते ऐसे होते भी थे…