Month: July 2018

टेडी हैं चाल मेरे अक्षरों की…

tedi chaal

 

मछली सी तैरती कागज़ की नाव ही थी वो,
जिसे बनाया भी मेने था और चलाया भी मेने था,
सवार थी जिस पर मेरे होठों की हसीं,
जिसे तैराया भी मेने था और डुबाया भी मेने था,
कितना आसान था तब समझना,
के जो तैर रहा है वो एक दिन डूब जायेगा,
आखिर कब तक लड़ेगा वो उन तेज़ लहरों से,
एक दिन उनमे वो खुद ही समां जायेगा,
और जो याद रह जाएगा वो होगा उसका परिश्रम,
जिसकी धुन हर पत्थर गनगुनायेगा….

शोर करते काँच के कंचे ही थे वो,
जिन्हे लड़ाया भी मेने था और इकठ्ठा भी मेने किया था,
कितना आसान था तब समझना,
के जो इस पल लड़ रहा है वो अगले ही पल साथ बैठे मटरगश्ती कर रहा होगा,
आखिर कब तक मुँह फुलाह के दूर कोने में बैठा रहेगा,
ज़िन्दगी का खेल चाहे कितनी भी देर चले,
मैदान में ही सबको समर्पित होना है,
वहीँ से उभरे थे और वोही सबका बिछोना है,
और कुछ याद रह जायेगा तो वो होगी एक सीख एक तजुर्बा,
जिसे इतिहास का हर पन्ना सुनाएगा….

इस कागज़ के पन्नो में चाहे कितने ही सीखें और तजुर्बे बयां कर दे,
पर कल उन्ही कहानियों में हम फिर उलझ जायेंगे,
फिर वही गलतियां दोहराएंगे और एक नयी जंग का ऐलान फरमाएंगे,
शायद ये अक्षर ही मोटे है,
जो नींद में चलते है और होश में सोते है,
मोटे ही सही ये चमक हैं मेरे सवालो की,
और टेडी हैं चाल इनके जवाबों की….