Month: September 2018

क्यों जाना है बड़े शहर?

क्यों जाना है बड़े शहर???

mumbai sunrise

 

पांच साल की थी मैं,
जब पहली बार बड़े शहर गयी थी,
अपने गाँव की गलियां फांद कर,
ऊँची इमारतें चढ़ी थी,
मेरे गाँव में दस बजे तक सब सो जाया करते थे,
रात के अँधेरे में बस जुगनू दिखाई पड़ते थे,
पर बड़े शहर में तो हर रात दिवाली होती थी,
रातें भी जागा करती थी,
और में दिन में भी न सोती थी,
छुट्टियान वहाँ बड़ी सुहानी लगती थी,
मेरे गाओं में सब एक तरह के कपडे पहना करते थे,
सात रंग तो वहां भी थे,
पर वो भी बोर हो जाया करते थे,
बड़े शहर में लोग एक दूसरे से मिलते न थे,
पर कपड़ो के रंगो में एकता दिखती थी,
होठों पे तो सच्ची मुस्कुराहटें न थी,
रंगों में भी मिलावट होती थी,
पर वो दौर ही मिलावट का ऐसा छाया था,
के सफ़ेद दूध भी तब मुझको न भाया था,
सफेदी तो बस अब झूठ में दिखती थी,
और ये झूठी ज़िंदगी मुझे सुहानी लगती थी,
छुट्टियां ख़तम हुई और मै वापस लौट आयी,
पर बड़े शहर की मिलावट को अपने अंदर समेत लायी,
अब मेरे सपने मेरी मासूमियत को टटोलने लगे थे,
किताबें मुझे पसंद न थी,
पढाई खूब अखरती थी,
पर बड़े शहर जाने की अब वो ही उम्मीद लगती थी,
किया परिश्रम और मै भी बड़े शहर पॉहोच गयी,
तब मिटटी के रंग का चॉकलेट शेक मुझे शहर की ओर खींचता था,
आज मिटटी की खुशबू मुझे मेरे गाँव बुलाती है,
आज मेरे कपडे भी टाइट हो गए है और मेरा शेड्यूल भी,
दिखावे के बाज़ार में मेरे सपने कब के बिक गए थे,
आज शायद उसी की कमाई खा रही हूँ,
शायद मेरे सपनो की नीव ही कमज़ोर रह गयी थी,
काश उस समय किसी बड़े से पूछ लिया होता,
के क्यों जाना है बड़े शहर?
शायद कोई ठोस वजह मिल जाती,
सपने देखना जितना ज़रूरी है,
उससे जरूरी उसे देखने की वजह है,
बदलाव जितना ज़रूरी है,
उससे भी ज़रूरी उसकी दिशा है,
चले मिलके हर उस बंजारे में तब्दील होने वाले सपने से पूछे,
के क्यों जाना है बड़े शहर???